चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न 'शिवोऽर्च्यः' शब्द में संधि के प्रकार की पहचान करने के लिए कह रहा है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
आइए शब्द का संधि-विच्छेद करें।
'शिवोऽर्च्यः' का विच्छेद 'शिवः + अर्च्यः' होता है।
संधि प्रक्रिया इस प्रकार है:
1. एक छोटे 'अ' के बाद और एक स्वर ('अ' इस मामले में) से पहले विसर्ग (ः) पहले 'उ' में बदल जाता है। यह विसर्ग संधि का हिस्सा है, जिसे विशेष रूप से उत्व संधि कहा जाता है। तो हमें 'शिव उ + अर्च्यः' मिलता है।
2. फिर, 'शिव' का पूर्ववर्ती 'अ' इस 'उ' के साथ गुण संधि द्वारा मिलकर 'ओ' बनाता है, जिसके परिणामस्वरूप 'शिवो + अर्च्यः' होता है।
3. अंत में, 'ओ' के बाद 'अर्च्यः' का 'अ' लुप्त हो जाता है और अवग्रह चिह्न (ऽ) द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। यह पूर्वरूप संधि है।
चूंकि पूरी प्रक्रिया विसर्ग के परिवर्तन से शुरू होती है, इसलिए इसे मुख्य रूप से विसर्ग संधि के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। यद्यपि पूर्वरूप और गुण संधि स्वर संधि के प्रकार हैं, वे बाद के चरण हैं। वर्गीकरण में, प्राथमिक प्रवर्तक (विसर्ग) संधि प्रकार को अपना नाम देता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
'शिवोऽर्च्यः' में प्राथमिक संधि विसर्ग संधि है। यह ध्यान देने योग्य है कि स्रोत छवि में दी गई उत्तर कुंजी (A) अनुस्वार संधि को चिह्नित करती है, जो इस शब्द के लिए व्याकरण की दृष्टि से गलत है। सही विश्लेषण (C) विसर्ग संधि की ओर इशारा करता है।