चरण 1: सांख्य का द्वैत-तत्त्व।
सांख्य दर्शन जगत को दो स्वतंत्र तत्त्वों से समझाता है—पुरुष और प्रकृति। यहाँ पुरुष ही आत्मा/चेतन तत्त्व है: वह अनेक, शुद्ध–चैतन्य, निरपेक्ष, अकर्ता–अभोक्ता साक्षी स्वरूप माना गया है; जबकि प्रकृति अचेतन, त्रिगुणात्मक (सत्त्व–रजस–तमस) कारण-तत्त्व है।
चरण 2: पद-भेद और अन्य दर्शनों से तुलना।
'जीव' शब्द वेदान्त/भक्ति परम्पराओं में देह–उपाधि से संलग्न आत्मा के लिए अधिक प्रयुक्त होता है; जैन में जीव–अजीव का भेद है। सांख्य में तकनीकी पद 'पुरुष' ही है। 'ईश्वर' का स्वीकार क्लासिकल सांख्य नहीं करता (योग में ईश्वर-प्रणिधान मिलता है), अतः विकल्प (1) असंगत है।
चरण 3: निष्कर्ष।
इसलिए सांख्य में आत्मा के लिए प्रयुक्त सही पद 'पुरुष' है—विकल्प (3)।