प्रतीत्यसमुत्पाद से आप क्या समझते हैं?
Step 1: सिद्धान्त की धुरी.
"यदा इदं अस्ति तदा तत् अस्ति; इदं उत्पन्नं तदा तत् उत्पद्यते"—अर्थात् सापेक्षता और सहोत्पत्ति। स्थायी, आत्मतन्त्र सत्ता का निषेध होता है।
Step 2: द्वादश निदान.
अविद्या\,$\to$\,संस्कार\,$\to$\,विज्ञान\,$\to$\,नाम-रूप\,$\to$\,षडायतन\,$\to$\,स्पर्श\,$\to$\,वेदना\,$\to$\,तृष्णा\,$\to$\,उपादान\,$\to$\,भव\,$\to$\,जाति\,$\to$\,जरा-मरण—यह चक्र दुःख की उत्पत्ति दिखाता है।
Step 3: दार्शनिक फल.
अनित्य (क्षणिकता), अनात्म (स्वतन्त्र आत्मा का अभाव) और शून्यता (स्वभाव-शून्यता) की अनुभूति करुणा और उपशम को जन्म देती है।
Step 4: साधना-सन्देश.
कारण-श्रृंखला को तोड़ना—विशेषतः तृष्णा और उपादान का परित्याग—ध्यान और प्रज्ञा से सम्भव है, जिससे निर्वाण-साध्य बनता है।
स्याद्वाद को समझाने के लिए जैन दर्शन में कितने 'नयों/भंगियों' का प्रतिपादन किया गया?
महावीर को निर्वाण कहाँ प्राप्त हुआ?
अनेकान्तवाद सम्बन्धित है—
बुद्ध के अष्टाङ्गिक मार्ग के प्रथम दो (सम्यक दृष्टि एवं सम्यक संकल्प) को क्या कहा जाता है?
चतुर्थ आर्य सत्य को क्या कहा जाता है?