चरण 1: अष्टाङ्गिक मार्ग की त्रि-श्रेणी।
बौद्ध धर्म में अष्टाङ्गिक मार्ग को तीन प्रशिक्षणों में बाँटा जाता है—प्रज्ञा (बुद्धि/ज्ञान), शील (नैतिक आचरण) और समाधि (मानसिक अनुशासन)। यह विभाजन साधक को क्रमबद्ध साधना का ढाँचा देता है।
चरण 2: अंग–श्रेणी का मिलान।
प्रज्ञा के अंतर्गत दो अंग आते हैं—सम्यक दृष्टि (यथार्थ समझ: दुःख, समुदय, निरोध, मार्ग की सम्यक बोध) और सम्यक संकल्प (त्याग, मैत्री/अहिंसा, करुणा से युक्त संकल्प)। शील में सम्यक वाणी, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका; समाधि में सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि आते हैं।
चरण 3: विकल्पों का उन्मूलन।
क्योंकि प्रथम दो अंग प्रज्ञा श्रेणी में स्थित हैं, अतः न शील (जो अगले तीन अंगों का समूह है) और न समाधि (अंतिम तीन) उपयुक्त है। इसलिए सही उत्तर प्रज्ञा है।