चरण 1: प्रवर्तक और ग्रन्थ।
न्याय दर्शन के प्रवर्तक आक्षेपाद गौतम माने जाते हैं, जिन्होंने न्यायसूत्र की रचना की। यह ग्रन्थ भारतीय तर्क-शास्त्र का मूल स्रोत है।
चरण 2: न्याय का केन्द्रीय विषय।
न्याय का ध्येय यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष तक पहुँचना है। इसके लिए यह चार प्रमाण स्वीकार करता है—प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द।
बाद के न्याय में १६ पदार्थ (जैसे प्रमाण, प्रमेय, संदेह, प्रयोजन, उदाहरण, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, विटण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति, निग्रहस्थान) से तर्क-वितर्क की पूर्ण पद्धति दी जाती है।
चरण 3: विकल्पों का उन्मूलन।
कपिल—सांख्य दर्शन के प्रवर्तक; कणाद—वैशेषिक के प्रवर्तक; महावीर—जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर। अतः न्याय के प्रवर्तक गौतम ही हैं।