Comprehension

निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :

बिधि न सकेउ सहि मोर दुलारा। नीच बीचु जननी मिस पारा॥ 
यहउ कहत मोहि आजु न सोभा। अपनी समुझि साधु सुछि को भा॥ 
मातु मंदि मैं साधु सुचाली। उर अस आनत कोटि कुचाली॥ 
फरइ कि कोदव बालि सुसाली। मुकता प्रसव कि संबुक काली॥ 
सपनेहुँ दोसक लेसु न काहू। मोर अभागा उद्दीध अवगाहू॥ 
बिनु समुझें निज अघ परिपाकू। जारिउँ जायतें जतनि कहि काकू॥ 
हृदयँ हेरि हरोउँ सब ओरा। एकहि भाँति भलोँह भल मोरा॥ 
गुरु गोसाईं साहिब सिय रामू। लागत मोहि नेक परिणामू॥ 
 

Question: 1

भरत अपने और राम के बिछोह का कारण किसे मानते हैं ?

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रामायण में भरत का चरित्र यह सिखाता है कि सच्चा प्रेम कभी किसी को दोष नहीं देता, बल्कि हर परिस्थिति को ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करता है।
Updated On: Jul 22, 2025
  • कैकेयी को
  • दशरथ को
  • भाग्य को
  • राजगद्दी को
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The Correct Option is C

Solution and Explanation

रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड में भरत के चरित्र को त्याग, संयम और मर्यादा का प्रतीक माना गया है। जब राम को वनवास जाना पड़ता है, तब भरत को राजगद्दी की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। लेकिन भरत स्वयं को इस योग्य नहीं मानते क्योंकि उनका मन राजसिंहासन से अधिक अपने भ्रातृ-प्रेम में रमा है।
भरत राम से बिछोह के कारण किसी व्यक्ति विशेष को दोष नहीं देते, न तो कैकेयी को, न ही दशरथ को। वे इस परिस्थिति के लिए केवल अपने दुर्भाग्य को उत्तरदायी मानते हैं।
भरत का कथन कि "भाग्य ही विधाता है, जो सब नियति पूर्वक घटित करता है", इस बात को स्पष्ट करता है कि वे कर्म से अधिक भाग्य के प्रभाव को स्वीकार करते हैं।
यह दृष्टिकोण उनकी सज्जनता, विवेकशीलता और सहिष्णुता का परिचायक है। वे दुख को भी सहज भाव से स्वीकार करते हैं और राम के वनवास को अपनी तपस्या मानते हैं।
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Question: 2

काव्यांश में ‘करोड़ों दुषाचारों’ जैसा किसे कहा गया है ?

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जब भी आप काव्यांश आधारित प्रश्न का उत्तर दें, तो उस शब्द या पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट करते हुए पात्र की दृष्टिकोण से उसका विश्लेषण करें।
Updated On: Jul 22, 2025
  • कैकेयी द्वारा राम को वनवास के लिए भेजना।
  • माँ को दोषी कहना और स्वयं को सदाचारी कहना।
  • गुरुजनों के बीच सभा में बोलना।
  • राम के स्थान पर गद्दी पर बैठना।
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The Correct Option is B

Solution and Explanation

रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड में तुलसीदासजी भरत की वाणी और सोच को बहुत ही विनम्र और आदर्शपूर्ण बताते हैं। भरत अपने मन की पीड़ा और वेदना को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी माँ को दोषी ठहराता है और स्वयं को सदाचारी, सच्चरित्र मानता है, वह 'करोड़ों दुषाचारों' से भी बढ़कर पापी है।
यहाँ तुलसीदासजी ने समाज के उस प्रवृत्ति की आलोचना की है, जिसमें व्यक्ति माता-पिता की गलती निकाल कर स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने की कोशिश करता है। भरत स्वयं की तुलना ऐसे लोगों से नहीं करते बल्कि ऐसे आचरण को तिरस्कृत करते हुए कहते हैं कि ऐसा करना अनेक दुष्कर्मों से भी अधिक निंदनीय है।
यह भाव न केवल भरत की महानता को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि वे अपने ऊपर हुए अन्याय को भी भाग्य की इच्छा मानते हैं और अपने मातृभक्त स्वरूप को बनाए रखते हैं। वे स्वयं को दोषी मानते हैं और अपने दुखों के लिए माँ को कभी दोष नहीं देते।
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Question: 3

‘कोदो के पौधे से शालिधान की बाली कैसे आएँगी’ — इस भाव से मिलती-जुलती कहावत है —

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कहावतों पर आधारित प्रश्नों में भावार्थ और जीवन से जुड़ा व्यावहारिक उदाहरण देने से उत्तर अधिक प्रभावशाली बनता है।
Updated On: Jul 22, 2025
  • कोयले की दलाली में मुँह काला
  • दूध का दूध पानी का पानी
  • जैसी करनी वैसी भरनी
  • बोए पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से होय
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The Correct Option is D

Solution and Explanation

यह कहावत — "कोदो के पौधे से शालिधान की बाली कैसे आएँगी" — उस परिस्थिति को दर्शाती है जहाँ निम्न गुणवत्ता या योग्यता वाले स्रोत से उच्च गुणवत्ता या श्रेष्ठ परिणाम की अपेक्षा करना व्यर्थ होता है।
इसी भाव को अभिव्यक्त करती है प्रसिद्ध कहावत — “बोए पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से होय।”
इसका अर्थ है कि यदि हम अपने कर्म, स्वभाव या सोच में त्रुटिपूर्ण और निम्नस्तरीय हैं, तो उससे उत्कृष्ट, पवित्र या सकारात्मक परिणाम की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
बबूल एक कांटेदार पेड़ है, जो कटुता और पीड़ा का प्रतीक है, जबकि आम स्वादिष्ट और प्रिय फल का प्रतीक है। अतः यदि हम कांटे बोते हैं तो फल की मिठास नहीं पा सकते।
इसलिए, इस कहावत का सीधा सम्बन्ध नैतिक शिक्षा से भी जुड़ता है कि जैसा कर्म करेंगे, वैसा ही फल प्राप्त होगा।
यह कहावत जीवन में यथार्थपरक दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देती है, जहाँ साधनों और प्रयत्नों की गुणवत्ता ही परिणामों को निर्धारित करती है।
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Question: 4

राम के लिए वनवास की इच्छा का दोषी काव्यांश में बताया गया है –

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उत्तर लिखते समय भावार्थ को ध्यानपूर्वक समझकर, पात्रों की मनोस्थिति को स्पष्ट करते हुए जवाब दें। इससे उत्तर में संवेदनशीलता और साहित्यिक गहराई जुड़ती है।
Updated On: Jul 22, 2025
  • भरत के दुर्भाग्य की लहर
  • कैकेयी का भरत के प्रति प्रेम
  • कैकेयी का भरत और राम के प्रेम को न समझना
  • राजा दशरथ द्वारा कैकेयी को दिए वरदान
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The Correct Option is A

Solution and Explanation

काव्यांश में भरत को एक अत्यंत सज्जन, विनम्र और धर्मनिष्ठ पुत्र के रूप में चित्रित किया गया है। उसने न तो कभी राज्य की इच्छा की और न ही राम के विरुद्ध कोई कुचेष्टा की।
फिर भी, राम को वनवास और स्वयं को राज्य का उत्तराधिकारी देख वह व्यथित और दुखी हो उठता है।
इस दुखद परिस्थिति को कवि ‘भरत के दुर्भाग्य की लहर’ कहकर संबोधित करता है — एक ऐसा दुर्भाग्य जो न स्वयं भरत ने चाहा और न ही उसका कोई दोष था।
राम का वनवास भरत के लिए आत्मग्लानि, लोकनिंदा और मानसिक पीड़ा का कारण बनता है, और इसी पीड़ा को कवि ने भावनात्मक शब्दों में प्रकट किया है।
यह संकेत करता है कि भरत को परिस्थिति का शिकार मात्र माना गया है, न कि कारण।
कविता का यह भाव यह भी स्पष्ट करता है कि भरत और राम का प्रेम इतना गहरा और सच्चा था कि राज्य का प्रस्ताव भी उन्हें एक-दूसरे से दूर करने का कारण नहीं बन सका।
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Question: 5

इस काव्यांश के मूल भाव को दर्शाने वाला कथन है –

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भावात्मक प्रश्नों में पात्रों की मानसिक स्थिति और उनके कार्यों की नैतिकता का विश्लेषण करते हुए उत्तर दें। इससे उत्तर अधिक प्रभावशाली बनता है।
Updated On: Jul 22, 2025
  • राम के स्वभाव की विशेषता व भाई के प्रति प्रेम
  • भरत का आत्मपरीताप और राम के प्रति प्रेम
  • माता कैकेयी द्वारा किए अपराध के लिए क्षमा याचना
  • माता कैकेयी को क्षमा कर अयोध्या लौटने की प्रार्थना
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The Correct Option is B

Solution and Explanation

यह काव्यांश भरत के गहन आत्मसंघर्ष, पश्चाताप और राम के प्रति निश्छल प्रेम को चित्रित करता है। भरत को यह स्वीकार्य नहीं कि वह राज्य पर अधिष्ठित हो, जबकि उनके प्रिय भ्राता राम वनवास झेल रहे हों।
उनकी आत्मग्लानि इतनी तीव्र है कि वह स्वयं को दोषी मानते हैं, जबकि उन्होंने किसी प्रकार का अपराध नहीं किया। भरत का यह त्याग, उनका संयम, और भ्रातृप्रेम की उत्कट अभिव्यक्ति — यही इस काव्यांश का मूल भाव है।
भरत राज्य का त्याग कर राम की पादुकाओं को सिंहासन पर विराजमान करते हैं, जो उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।
इस संपूर्ण भावभूमि में नायक भरत हैं, जिनका अंतर्मन ग्लानि और प्रेम से भरा हुआ है।
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