डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म 1907 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के महान आलोचक, निबंधकार, इतिहासकार और विचारक थे। उनकी लेखनी में गहरी विद्वत्ता, भाषा की सरलता और परंपरा व आधुनिकता का संतुलन देखने को मिलता है। वे हिंदी साहित्य में आलोचना और शोधपरक अध्ययन के महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं।
उन्होंने हिंदी गद्य को एक नई दिशा प्रदान की और भारतीय संस्कृति, साहित्य और दर्शन पर शोध किया। उनकी प्रमुख रचनाएँ 'अशोक के फूल', 'नाथ संप्रदाय', 'कबीर', 'हिंदी साहित्य की भूमिका', 'चारु चंद्रलेख', 'साहित्य का सहचर', 'कल्पलता', 'पुनर्नवा' आदि हैं। उन्होंने हिंदी आलोचना को साहित्यिक विवेचन और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से समृद्ध किया।
डॉ० द्विवेदी संस्कृत, हिंदी और भारतीय संस्कृति के गहरे ज्ञाता थे। वे शांतिनिकेतन में लंबे समय तक अध्यापक रहे और बाद में उन्होंने वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग का नेतृत्व किया। उनकी आलोचनात्मक दृष्टि ने हिंदी साहित्य को नया आधार दिया। उनकी रचनाओं में भारतीय परंपराओं, संस्कृति और लोक जीवन की झलक मिलती है। वे कबीर और भक्ति आंदोलन के गहन अध्येता थे और उन्होंने नाथ संप्रदाय पर महत्वपूर्ण शोध कार्य किया।
डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य को केवल साहित्यिक ही नहीं, बल्कि दार्शनिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध किया। उनकी शैली सहज, प्रभावी और दार्शनिकता से भरपूर थी। वे भारतीय संस्कृति और परंपरा के प्रवर्तक विचारकों में से एक थे।