चरण 1: तर्क की पहचान।
विश्वमूलक (Cosmological) तर्क जगत/संसार के अस्तित्व, परिवर्तन और कारण-श्रृंखला से आरम्भ करता है और निष्कर्ष निकालता है कि इस श्रृंखला का अकारण/प्रथम कारण या निरपेक्ष आवश्यक सत्ता होना चाहिए—इसी को ईश्वर कहा जाता है।
चरण 2: प्रमुख रूप।
(i) कारण-श्रृंखला तर्क (Thomas Aquinas की "First Cause/Unmoved Mover"): अनन्त प्रतिगमन अस्वीकार्य है; अतः प्रथम कारण अनिवार्य।
(ii) आवश्यकता–संभाव्यता (Contingency) तर्क: जो कुछ संभाव्य है, उसके अस्तित्व का आधार अनिवार्य सत्ता में है; इसलिए एक Necessary Being (ईश्वर) मानना पड़ता है।
(iii) पर्याप्त कारण का सिद्धान्त (Leibniz): "क्यों कुछ है, शून्य क्यों नहीं?"—जगत के अस्तित्व का पर्याप्त स्पष्टीकरण ईश्वर है।
चरण 3: अन्य विकल्पों से भेद।
प्रयोजनमूलक (Teleological) तर्क डिज़ाइन/उद्देश्य से ईश्वर का कथन करता है; सत्तामूलक (Ontological) तर्क मात्र विचार/परिभाषा (परम परिपूर्ण सत्ता) से अस्तित्व निष्कर्षित करता है। यहाँ प्रश्न में "जगत के अस्तित्व" को आधार बनाया गया है—अतः विश्वमूलक सही है।