पिछली गर्मियों में हमारे परिवार ने उत्तराखंड के एक प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्य में जंगल सफ़ारी की योजना बनाई। सुबह-सुबह जीप में बैठकर जब हम जंगल की गहराइयों में प्रवेश कर रहे थे, तो हर दिशा से पक्षियों की आवाज़ें, पत्तों की सरसराहट और हवा में घुली हरियाली की ख़ुशबू रोमांचित कर रही थी।
थोड़ी ही देर में ड्राइवर ने धीरे से गाड़ी रोक दी और कहा, "सामने देखिए!" — दूर एक हाथियों का झुंड वृक्षों के बीच चल रहा था। हम सभी उत्साहित थे, कैमरे क्लिक कर रहे थे।
अचानक एक युवा हाथी ने हमारे वाहन की ओर देख कर चिंघाड़ लगाई और तेज़ी से हमारी ओर बढ़ा। उसके पीछे दो और हाथी आ गए। देखते ही देखते हम उनके झुंड के बीच घिर चुके थे।
मेरे दिल की धड़कन मानो रुक गई थी। ड्राइवर ने तुरंत इंजन बंद कर दिया और शांत रहने का संकेत दिया। हम सब अपनी साँसें रोके बैठे रहे।
हाथियों ने गाड़ी के आसपास दो चक्कर लगाए, उनकी आँखों में सतर्कता थी, पर आक्रोश नहीं। कुछ क्षण बाद वे आगे बढ़ गए।
जब वे दूर चले गए तो हमारे भीतर की घबराहट आहिस्ता-आहिस्ता कम होने लगी। वह अनुभव डरावना तो था ही, लेकिन उससे भी अधिक प्रेरणादायक — हमने सीखा कि जंगल में हर कदम सोच-समझकर रखना होता है और हर जीव का सम्मान आवश्यक है।
वह पल आज भी स्मृति में उतना ही जीवंत है — प्रकृति की शक्ति के सामने मनुष्य कितना लघु है, यह एहसास सदा के लिए हमारे भीतर अंकित हो गया।