Question:

‘जीवन में प्रायः सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है।’ कथन का आशय स्पष्ट करते हुए लिखिए कि महादेवी जी ने ऐसा किस सन्दर्भ में कहा है ? 
 

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जब किसी कथन का “संदर्भ” पूछा जाए तो यह बताना ज़रूरी होता है कि वह कथन कहाँ, किस भावना या सामाजिक स्थिति में कहा गया।
Updated On: Jul 30, 2025
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Solution and Explanation

यह कथन महादेवी वर्मा जी की आत्मकथ्यात्मक रचना “स्मृति” में नारी जीवन की जटिलता को दर्शाते हुए दिया गया है। उन्होंने नारी के अस्तित्व और सामाजिक पहचान के बीच द्वंद्व को रेखांकित किया है।
यहाँ “नाम का विरोधाभास” उस सामाजिक पहचान की ओर संकेत करता है जिसे समाज किसी व्यक्ति पर थोप देता है, जबकि व्यक्ति का वास्तविक अस्तित्व और भावनात्मक जीवन उससे भिन्न होता है।
महादेवी जी यह कहती हैं कि समाज स्त्री को ‘पत्नी’, ‘बहू’, ‘माँ’ जैसे नामों से सीमित करता है, परंतु उसका आत्मस्वरूप, सोच, और भावनात्मकता इन नामों से कहीं अधिक व्यापक होती है। वह अपनी निजता में कहीं गुम हो जाती है, और तब उसे अपने ही नाम के विरोध में जीने की त्रासदी सहनी पड़ती है।
यह कथन विशेषतः स्त्री-सशक्तिकरण, सामाजिक बंधनों और स्वत्व की खोज के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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