जगन्नाथ दास 'रत्नाकर' हिंदी भक्ति साहित्य के प्रसिद्ध कवि थे। उनकी कृति 'गंगालहरी' गंगा नदी की महिमा और भक्ति का वर्णन करती है। उनका लेखन आध्यात्मिकता और धार्मिक भावना से परिपूर्ण है। वे अपने भक्ति गीतों और कविता के माध्यम से गंगा नदी की पवित्रता और उसके प्रति श्रद्धा को व्यक्त करते थे। 'गंगालहरी' में गंगा के दिव्य गुणों, उसके निरंतर प्रवाह और उसकी जीवनदायिनी शक्ति की चर्चा की गई है। रत्नाकर की कविताएँ भक्ति भावना और प्रभु के प्रति समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। वे धार्मिक एवं आध्यात्मिक साधना के महत्व पर भी जोर देते थे और समाज को उच्च आदर्शों की ओर प्रेरित करते थे। उनकी रचनाओं में शांति और संतुलन का संदेश मिलता है, जो आज भी पाठकों को प्रभावित करता है।
'गंगालहरी' की रचनाएँ हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। रत्नाकर का भक्ति दृष्टिकोण बहुत ही सहज और सामान्य था, जिससे वह सामान्य जनता तक अपनी बात पहुँचाने में सफल हुए। उनके गीतों का शास्त्रीय रूप कम था, लेकिन उनकी सरलता और भावनात्मक गहराई ने उसे जनमानस में लोकप्रिय बना दिया। वे गंगा को मां के रूप में पूजा करते थे और उनका संदेश था कि गंगा में स्नान से न केवल शरीर की शुद्धि होती है, बल्कि आत्मा की भी शुद्धि होती है।
उनकी कविताओं में गंगा के जल, उसकी लहरों और उसके माध्यम से भगवान के साथ आत्मिक संबंध को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है। रत्नाकर का भक्ति साहित्य, समाज में उच्च आदर्शों की स्थापना, और धर्म के प्रति आस्थावान दृष्टिकोण उनकी सृजनात्मकता और साहित्यिक योगदान का प्रमाण है।
वे न केवल एक धार्मिक कवि थे, बल्कि उनके काव्य में समर्पण, तात्त्विकता और जीवन के आदर्श मूल्यों की भी गहरी समझ थी।