“ऑस्कर के लिए आपकी फ़िल्म नामित हुई है” — यह संदेश जब मेरे मोबाइल स्क्रीन पर उभरा, तो कुछ क्षणों के लिए मैं सन्न रह गया। आँखें नम हो गईं और मेरे हृदय में हज़ारों भावनाएँ एक साथ उमड़ पड़ीं। वह फ़िल्म, जिसे मैंने सीमित संसाधनों में, पर असीम जुनून के साथ बनाया था — आज विश्व के सबसे प्रतिष्ठित मंच पर पहचानी जा रही थी।
इस फ़िल्म का विषय मेरे गाँव की उस अनसुनी नायिका पर आधारित था जिसने अकेले ही पूरे गाँव को शिक्षा के लिए प्रेरित किया। जब मैं उसकी कहानी लिख रहा था, तब केवल सच्चाई और संवेदना ही मेरा मार्गदर्शन कर रही थी। न कोई बड़ी टीम, न महंगे कैमरे — केवल समर्पण और ईमानदारी।
फ़िल्म निर्माण की पूरी प्रक्रिया मेरे लिए एक साधना थी। कैमरा चलाते हुए कई बार आँसू बहते थे — कभी दृश्य की तीव्रता से, तो कभी अपने भीतर उठते आत्म-संवाद से।
फ़िल्म के पूरा होते ही उसे कई फ़ेस्टिवल्स में सराहा गया, पर मैंने कभी ऑस्कर तक पहुँचने की कल्पना भी नहीं की थी।
चयन की सूचना मिलते ही मीडिया, सोशल मीडिया, और शुभकामनाओं की बाढ़ आ गई। पर मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार था — जब गाँव की वह नायिका मेरे पास आई, मेरा हाथ थामा और कहा, “तुमने मुझे अमर कर दिया।”
आज भी जब मैं उस क्षण को याद करता हूँ — स्टेज पर ऑस्कर की सुनहरी प्रतिमा लिए — मुझे लगता है कि यह केवल मेरी जीत नहीं थी, यह हर उस कहानी की जीत थी जो अक्सर अनसुनी रह जाती है।