ईश्वर के अस्तित्व के संदर्भ में प्रयोजनमूलक (टेलीओलॉजिकल) युक्ति का वर्णन करें।
Step 1: तर्क की रीढ़.
"जहाँ जटिल तथा उपयुक्त संरचना और लक्ष्योन्मुख व्यवहार दिखे, वहाँ सामान्यतः बुद्धि-नियोजन का अनुमान उचित।" जगत सूक्ष्म-नियमों से चलता है; जैव-विकास में अनुकूलन, भौतिक ब्रह्माण्ड में सूक्ष्म-संयोजन, सामाजिक क्षेत्र में नैतिक क्रम—ये सब उद्देश्यपूर्णता की ओर संकेत करते हैं।
Step 2: दार्शनिक रूप.
क्लासिकल रूप 'डिज़ाइन-आर्ग्यूमेंट' है; आधुनिक स्वरूप 'फाइन-ट्यूनिंग' और 'प्रोबेबलिस्टिक डिजाइन' कहलाते हैं, जो संयोग/बहु-ब्रह्माण्ड जैसी आपत्तियों पर प्रायिक तुलनात्मक (inference to best explanation) उत्तर देते हैं।
Step 3: आपत्तियाँ व प्रत्युत्तर.
विकासवाद संयोग का नहीं, नियमित चयन-प्रक्रिया का सिद्धान्त देता है; टेलीओलॉजी इसके ऊपर-स्तर की व्याख्यात्मक पर्याप्तता का प्रश्न उठाती है—क्यों नियम ऐसे हैं जो जीवन-संगत हों?
Step 4: निष्कर्ष.
यह युक्ति ईश्वर-सिद्धि की सम्भाव्य नींव रखती है; नैतिक व आध्यात्मिक प्रमाणों के साथ मिलकर समेकित युक्तिसंगतता पैदा करती है।
'प्रयोजनमूलक युक्ति' (Teleological / Pragmatic Argument) सम्बन्धित है—
निम्न में से किस युक्ति का कहना है कि ईश्वर का अस्तित्व, ईश्वर के विचार से अनिवार्यतः फलित होता है?
ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए देकार्त ने निम्न में से किस सिद्धान्त का प्रयोग किया है?
निम्न में से कौन 'समानान्तरवाद' (Psychophysical Parallelism) का समर्थक है?
पूर्व स्थापित सामंजस्य सिद्धान्त सम्बन्धित है—