निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गद्यांश : हर्ल–ऑर्गैनिक (जैविक) आहार ऐसे आहार होते हैंजो प्राकृतिक रूप से शुद्ध और ताज़ा होते हैंऔर स्वास्थ्य केलिए लाभकारी हैं। परंपरागत व्यंजन, पेय पदार्थ, फल–सब्जियाँ और मसाले सदा से हमारे भोजन का महत्वपर्णू र्णहिस्सा रहे हैं। परंपरागत और स्वदेशी भोजन एवं पेय पदार्थ पारंपरिक फास्टफूड एवं स्वाद युक्त कोल्ड ड्रि ंक्स के शानदार विकल्प हैं। सरकार, व्यापारियों और दुकानदारों को नया कुछ भी नहीं करना है । बस उन्हें पहले से स्थापित भोजनालयों, दुकानों एवं शैक्षणिक संस्थानों, कम्पनी कार्यालयों की कैंटीनों, मॉल्स तक इनको पहुँचाना है । परंपरागत खाद्य पदार्थों के साथ ऑ र्थो र्गैनिक खाद्य एवं पेय पदार्थों की र्थो बिक्री केलिए विशेष व्यवस्था की जानी चाहिए ।ऑर्गैनिक फलोंऔर सब्जियों के ताजे जस, स ू प, शरबत, द ू ध, छाछ, लस्सी, ठंडाई, ह ू र्बल चाय, जो, गेहँ, मक्का या बाजरे की बाखरी, ू नींबूकी शिकं जी के साथ ऑर्गैनिक फल भी उपयोगताओं को उपलब्ध कराए जा सकते हैं। साधारण ढाबों से लेकर पाँच सितारा होटलों तक शरबत, नारियल पानी, जस का ज ू स, तरब ू ज का ज ू स, स ू प और ू छाछ जैसे पेय पदार्थों को उपलब्ध कराकर इनकी उपयोगताओं में लोक र्थो प्रिय बनाया जा सकता है । एक तरफ हर्बल फूड हॉट मटका जहाँ ऑर्गैनिक हरी सब्जियाँ, दालें एवंमिलेट्स सेनिर्मित भोजन में उपलब्ध कराया जा सकता है । अंकुरित दालें , अनाज, जो, गेहँ, मक्का, मक्की की रोटी आ ू दि मानव स्वास्थ्य को भी बचाया जा सकता है ।
पारंपरिक भोजन को लोकप्रिय कैसे बनाया जा सकता है?
(i) उपलब्धता बढ़ाकर
(ii) प्रचार–प्रसार द्वारा
(iii) बिक्री की विशेष व्यवस्था करके
(iv) घर–घर घमकर ऑ ू र्गैनिक सामान बाँटकर
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर दिए गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प का चयन कर लिखिए :
हालाँकि उसे खेती की हर बारीकी के बारे में मालूम था, लेकिन फिर भी डरा दिए जाने के कारण वह अकेला खेती करने का साहस न जुटा पाता था । इससे पहले वह शेर, चीते और मगरमच्छ के साथ साझे की खेती कर चुका था, अब उससे हाथी ने कहा कि अब वह उसके साथ साझे की खेती करे । किसान ने उसको बताया कि साझे में उसका कभी गुज़ारा नहीं होता और अकेले वह खेती कर नहीं सकता । इसलिए वह खेती करेगा ही नहीं । हाथी ने उसे बहुत देर तक पट्टी पढ़ाई और यह भी कहा कि उसके साथ साझे की खेती करने से यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे और खेती की अच्छी रखवाली हो जाएगी ।
किसान किसी न किसी तरह तैयार हो गया और उसने हाथी से मिलकर गन्ना बोया ।
समय पर जब गन्ने तैयार हो गए तो वह हाथी को खेत पर बुला लाया । किसान चाहता था कि फ़सल आधी-आधी बाँट ली जाए । जब उसने हाथी से यह बात कही तो हाथी काफ़ी बिगड़ा ।
हाथी ने कहा, “अपने और पराए की बात मत करो । यह छोटी बात है । हम दोनों ने मिलकर मेहनत की थी हम दोनों उसके स्वामी हैं । आओ, हम मिलकर गन्ने खाएँ ।”
किसान के कुछ कहने से पहले ही हाथी ने बढ़कर अपनी सूँड से एक गन्ना तोड़ लिया और आदमी से कहा, “आओ खाएँ ।”
गन्ने का एक छोर हाथी की सूँड में था और दूसरा आदमी के मुँह में । गन्ने के साथ-साथ आदमी हाथी के मुँह की तरफ़ खिंचने लगा तो उसने गन्ना छोड़ दिया ।
हाथी ने कहा, “देखो, हमने एक गन्ना खा लिया ।”
इसी तरह हाथी और आदमी के बीच साझे की खेती बँट गई ।
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
भारत और अफ्रीका के अधिकांश इलाकों को यदि छोड़ दें तो समूची दुनिया बुढ़ापे की ओर बढ़ चली है। जैसे-जैसे दुनिया बूढ़ी होती जा रही है श्रम बल की भयंकर कमी का सामना करने लगी है, यहाँ तक कि उत्पादकता में भी कमी आने लगी है। ऐसे में 'सिल्वर जेनरेशन (रजत पीढ़ी) एक बहुमूल्य जनसांख्यिकीय समूह साबित हो सकती है। इससे न सिर्फ मौजूदा चुनौतियों से पार पाने में मदद मिलेगी, बल्कि समाज के कामकाज का तरीका भी बदल सकता है। विश्व के कई देशों में नए उद्यमियों का बड़ा हिस्सा इसी रजत पीढ़ी का है और कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के कार्य-बल में इनकी हिस्सेदारी काफी बढ़ गई है। ऐसे में, सरकारों और कंपनियों को मिलकर आधुनिक कार्य-बल में 'उम्रदराज’ लोगों को शामिल करने पर जोर देना चाहिए।
बेशक उम्र के अंतर को पाटने के लिए प्रवासन को बतौर निदान पेश किया जाता है, पर यह तरीका अब राजनीतिक मसला बनने लगा है और अपनी लोकप्रियता भी खोता जा रहा है । इसीलिए, सरकारों को रजत पीढ़ी की ओर सोचना चाहिए। कई अध्ययनों से पता चलता है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी बुजुर्ग काम के योग्य होते हैं या उचित अवसर मिलने पर काम पर लौट आते हैं । इनके अनुभवों का बेहतर उपयोग हो सके, इसके लिए नियोक्ताओं और सरकारों को मिलकर काम करना चाहिए । रजत पीढ़ी को प्रभावी रूप से योगदान देने के लिए सशक्त और प्रशिक्षित किया जाए।
कारोबारी लाभ के अतिरिक्त, इसके सामाजिक लाभ भी हैं, जैसे वृद्ध लोगों का स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कम होता है | जो दिमाग सक्रिय रहता है, वह समस्याओं को सुलझाने और दूसरों के साथ बातचीत करने का आदी होता है, जिसका कारण उसका क्षय तुलनात्मक रूप से धीमा होता है । सेहतमंद बने रहने की भावना शरीर पर भी सकारात्मक असर डालती है और बाहरी मदद की जरूरत कम पड़ती है।
रजत पीढ़ी का ज्ञान और अनुभव अर्थव्यवस्था को नए कारोबार स्थापित करने, नई चीजें सीखने और दूसरे करियर को अपनाने के अनुकूल बनाता है । जैसे-जैसे जन्म-दर में गिरावट आ रही है, कार्य-बल की दरकार दुनिया को होने लगी है और इसका एकमात्र विकल्प रजत पीढ़ी के जनसांख्यिकीय लाभांश पर भरोसा करना है ।
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
बढ़ती उम्र के साथ हमारे दिमाग का संज्ञानात्मक कौशल, पहचानने और याद रखने की क्षमता मंद पड़ने लगती है। पर यह भी सच है कि हमारे दिमाग में यह क्षमता भी है कि उम्र बढ़ने के साथ वह नया सीख भी सकता है और पुराने सीखे हुए पर अपनी पकड़ बनाए रख सकता है। मेडिकली की भाषा में इसे न्यूरोप्लास्टिसिटी कहते हैं। पर इसके लिए आपको नियमित अध्ययन करना पड़ता है। रचनात्मकता बहुत सारी सूचनाओं के होने से ही नहीं आती। हम तब कुछ रच पाते हैं, जब सूचनाओं को ढंग से समझते हैं और पूर्व ज्ञान से उसे जोड़ पाते हैं। तभी वह हमारे गहन शिक्षण का हिस्सा बन पाती है और लंबे समय तक हम उसे याद रख सकते हैं।
हमारे दिमाग का बड़ा हिस्सा चीजों को उनके दृश्यचित्र व जगह के आधार पर भी याद रखता है। स्क्रीन पर हम लिखे हुए शब्दों को स्क्रॉल करते हुए आगे बढ़ जाते हैं या कुछ मिनटों बाद ही सोशल मीडिया या दूसरे लिंक्स पर चले जाते हैं, जबकि किताब का बहुआयामी दृश्यचित्र और उसमें लिखे शब्द स्थिर होते हैं। मनुष्य व्यक्ति को उस तरह प्रीत नहीं कर पाती जिस तरह प्यार व हमदर्दी से बने रिश्ते। इसलिए स्क्रीन समय के बढ़ते देश परंपरागत पढ़ाई के तौर-तरीकों को आगे बढ़ा रहे हैं। किताबों पढ़ने के बाद हमें अक्सर चीजें, चित्र या स्थान विशेष के साथ याद रहती हैं। लंबी याददाश्त के लिए डिजिटल स्क्रीन की जगह किसी को पढ़ना दिमाग के लिए अधिक बेहतर साबित होता है। समय-समय पर चीजों को दोहराएँ। उत्तम दिमाग को चुनौतियाँ दें। जब दिमाग को नई चुनौतियाँ दी जाएं, वह उत्तम बेहतर कार्य करता है। स्वस्थ्य दिमाग को जीवन का अंग बनाएँ।
निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :
उस जादू की जकड़ से बचने का एक सीधा-सा उपाय है। वह यह कि बाज़ार जाओ तो खाली मन न हो। मन खाली हो, तब बाज़ार न जाओ। कहते हैं लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए। पानी भीतर हो, लू का लू-पन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य से भरा हो, तो बाज़ार भी फैलाव-का-फैलाव ही रह जाएगा। तब वह घाव बिल्कुल नहीं दे सकेगा, बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाज़ार तुमसे कृतार्थ होगा, क्योंकि तुम कुछ-न-कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाज़ार की असली कृतार्थता है -- आवश्यकता के समय काम आना।
यहाँ एक अंतर समझ लेना बहुत ज़रूरी है। मन खाली नहीं रहना चाहिए, इसका मतलब यह नहीं है कि मन बंद रहना चाहिए। जो बंद हो जाएगा, वह शून्य हो जाएगा। शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है।
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उत्तर पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
बालपन तकनीक के जाल में बुरी तरह उलझ गया है। खेल, सूचनाएँ, अध्यवसाय से जुड़ी सामग्री, विद्यालय गतिविधियों की जानकारियाँ और मित्रता तक सभी कुछ बच्चों तकनीकी संसाधनों के माध्यम से ही हो रहे हैं। तकनीक के सीमित क्षेत्र में मानव ने अपनी एक अलग दुनिया बना ली है। फलस्वरूप अवतरित होती सामाजिक बाध्यताएँ कहर ढा रही हैं, घटनाएँ घट रही हैं। इस तरह के लिए इस सामग्री में से बच्चों को कोई हिदायत या अभिभावकों की सहज सलाह ही स्वीकार नहीं। इस सामग्री ने बच्चों को मासूमियत ही नहीं समझ भी छीन ली है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मोबाइल गेमिंग की लत को एक डिसऑर्डर माना है। इस आभासी व्यस्तता के कारण एकाग्रता के साथ-साथ बच्चों की बाल सुलभ रचनात्मकता भी घट रही है। गेमिंग की लत के कारण शारीरिक गतिविधियाँ घटने से बच्चों को मोटापा, आलस्य और आँखों की समस्याएँ घेर रही हैं। एम्स के चिकित्सकों के अनुसार हमारे यहाँ 2050 तक लगभग 40 से 45 प्रतिशत बच्चे मायोपिया का शिकार हो जाएँगे।
बच्चों की इस बदलती दुनिया में अभिभावकों को सचेत रहकर चेतना जगाना आवश्यक है। बच्चों और बड़ों के बीच नियमित संवाद ज़रूरी है। घर का माहौल बदलना और माता-पिता को स्मार्टफोन्स की चकाचौंध से दूर रहना पहला कदम है। मोबाइल फोन की लत के विरुद्ध बच्चों को धीरे-धीरे संस्कार के सहारे जीवन जीने की ओर मोड़ना होगा। छोटी क्लासों में साइंस बि़जि़, मोबाइलफोन्स और अन्य गैजेट्स का सीमित व समुचित प्रयोग रिपोर्ट में परिलक्षित हो सकता है। बच्चों को खेल के मैदान में अधिकतम समय देना चाहिए। बच्चे 18 वर्ष की आयु तक तकनीकी माध्यमों से पूरी तरह मुक्त रहें यह भी नहीं कहा जा सकता। तकनीक के साथ सही संतुलन और संयम ही परिवार को सही सहज जीवन से जोड़ने का पहलू है, वहीं मोबाइल पर माता-पिता की सीमित और संयमित भूमिका भविष्य में बच्चों का जीवन सहेज सकती है।