क्रिप्स मिशन की असफलता के कारणों की व्याख्या कीजिए।
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क्रिप्स मिशन की विफलता एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। इसने भारतीय नेताओं को विश्वास दिलाया कि ब्रिटिश सरकार स्वेच्छा से भारत नहीं छोड़ेगी, जिसके परिणामस्वरूप अगस्त 1942 में 'भारत छोड़ो आंदोलन' शुरू हुआ।
मार्च 1942 में सर स्टैफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में क्रिप्स मिशन भारत आया। इसका उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करना था। इसकी असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
तत्काल स्वतंत्रता का अभाव: मिशन ने युद्ध के बाद भारत को डोमिनियन स्टेटस देने का प्रस्ताव दिया, न कि तत्काल पूर्ण स्वतंत्रता का। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी, क्योंकि 1929 के लाहौर अधिवेशन में ही 'पूर्ण स्वराज' को अपना लक्ष्य घोषित कर चुकी थी।
विभाजन की संभावना: मिशन के प्रस्ताव में यह प्रावधान था कि जो प्रांत भारतीय संघ में शामिल नहीं होना चाहते, वे अपना अलग संविधान बना सकते हैं। कांग्रेस ने इसे भारत के विभाजन की दिशा में एक कदम के रूप में देखा और इसका कड़ा विरोध किया।
मुस्लिम लीग की असंतुष्टि: मुस्लिम लीग ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया क्योंकि इसमें स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के निर्माण की मांग को स्वीकार नहीं किया गया था। वह आत्म-निर्णय के अधिकार के बजाय एक निश्चित विभाजन चाहती थी।
रियासतों के प्रतिनिधियों का मुद्दा: मिशन ने प्रस्ताव दिया कि रियासतों के प्रतिनिधि संविधान सभा के लिए जनता द्वारा नहीं, बल्कि शासकों द्वारा मनोनीत किए जाएंगे। यह अलोकतांत्रिक था और कांग्रेस को स्वीकार्य नहीं था।
वास्तविक शक्ति हस्तांतरण का अभाव: मिशन ने तत्काल रक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभागों पर कोई भी वास्तविक शक्ति भारतीयों को हस्तांतरित करने से इनकार कर दिया।
इन्हीं कारणों से, भारत की लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया। गांधीजी ने इसे "एक दिवालिया बैंक के नाम भविष्य की तारीख का चेक" (a post-dated cheque on a crashing bank) कहकर इसकी आलोचना की।