बुद्ध के द्वितीय आर्य सत्य की विवेचना करें।
Step 1: संदर्भ.
चार आर्य सत्यों का ढाँचा—रोग (दुःख), कारण (समुदय), निरोध (उपशमन), मार्ग (आष्टाङ्गिक)—में दूसरी कड़ी कारण-निर्णय है।
Step 2: तृष्णा की प्रकृति.
इन्द्रिय-भोग की चाह (कामा), अस्तित्व-चाह (भव), विनाश-चाह (विभव)—ये आसक्ति/द्वेष/मोह को जन्म देकर कर्म-बंध रचते हैं।
Step 3: निदान-श्रृंखला.
अविद्या $\to$ संस्कार $\to$ विज्ञान … $\to$ उपादान $\to$ भव $\to$ जाति $\to$ जरा-मरण—तृष्णा/उपादान कड़ी तोड़ने से चक्र रुकता है।
Step 4: साधना-निहितार्थ.
स्मृति-सती, प्रज्ञा, शील, समाधि और करुणा—इनसे तृष्णा क्षीण; मार्ग (सम्यक दृष्टि… सम्यक समाधि) व्यावहारिक औषधि है।
स्याद्वाद को समझाने के लिए जैन दर्शन में कितने 'नयों/भंगियों' का प्रतिपादन किया गया?
महावीर को निर्वाण कहाँ प्राप्त हुआ?
अनेकान्तवाद सम्बन्धित है—
बुद्ध के अष्टाङ्गिक मार्ग के प्रथम दो (सम्यक दृष्टि एवं सम्यक संकल्प) को क्या कहा जाता है?
चतुर्थ आर्य सत्य को क्या कहा जाता है?