चरण 1: संयुक्त परिवार की संकल्पना। 
भारतीय समाजशास्त्र में संयुक्त परिवार वह इकाई है जिसमें सामूहिक जीवन (एक निवास, एक रसोई) के साथ आर्थिक संयुक्तता विद्यमान रहती है—उत्पन्न आय, भूमि/संपत्ति और व्यय का प्रबंधन साझा होता है और परिवार-प्रमुख की अधिष्ठाता में चलता है। 
चरण 2: कौन-सा लक्षण निर्णायक है? 
पीढ़ियाँ तीन से अधिक होना सामान्य रूप है, पर केवल बहु-पीढ़ीय होना पर्याप्त नहीं—अलग कमाई/अलग खर्च होने पर वह संयुक्त नहीं माना जाता। पुरुष-प्रधानता या अनुशासन जैसी बातें कभी-कभी मिलती हैं, पर वे परिभाषात्मक नहीं। इसके विपरीत संपत्ति/आय का संयुक्त स्वामित्व और साझा उपभोग संयुक्त परिवार की केन्द्रीय/न्यूनाधिक शर्त है; यही उसे एक आर्थिक सहकारी इकाई बनाती है और संयुक्तता को बनाए रखती है। 
निष्कर्ष: इसीलिए भूमि/संपत्ति की संयुक्त मिल्कियत संयुक्त परिवार का सबसे महत्वपूर्ण और परिभाषात्मक लक्षण है।