भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिंदी साहित्य के 'आधुनिक हिंदी के जनक' माने जाते हैं। उन्होंने नाटक, कविता, और गद्य साहित्य में योगदान दिया। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं: 'भारत दुर्दशा', 'सत्य हरिश्चन्द्र', और 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति'। उनका लेखन सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय चेतना पर केंद्रित था। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हिंदी साहित्य में न केवल नए प्रयोग किए, बल्कि भारतीय समाज को जागरूक करने का कार्य भी किया। उनका साहित्य हिंदी के समृद्ध साहित्यिक परंपरा का आधार बना और वे आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रारंभिक नायक बने। उन्होंने हिंदी में नाटक की शुरुआत की और अपने लेखन से भारतीय समाज में जागरूकता और सुधार की आवश्यकता को महसूस कराया। वे भारतीय समाज की पुरानी परंपराओं और रीति-रिवाजों की आलोचना करते हुए उसे सामाजिक सुधार की दिशा में ले जाने की कोशिश करते थे। उनके नाटक और कविताएँ आज भी भारतीय समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का साहित्य सामाजिक सुधार की ओर प्रेरित करता है। उन्होंने अंधविश्वास, जातिवाद और महिला उत्पीड़न जैसे मुद्दों को अपने लेखन का विषय बनाया। 'सत्य हरिश्चन्द्र' जैसे नाटक ने भारतीय समाज को सही और गलत के बीच अंतर समझाया और सच्चाई की अहमियत को दर्शाया। उनके लेखन में भारतीय समाज की कुरीतियों के खिलाफ एक प्रबल आक्रोश दिखाई देता है।
उनकी रचनाएँ केवल साहित्यिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि ये सामाजिक परिवर्तन और जागरूकता का भी प्रतीक हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचनाओं में भारतीय समाज को एक नया दृष्टिकोण और दिशा मिली, जिससे उन्होंने समाज की गलत परंपराओं और आदतों को चुनौती दी।