भारत विभाजन के लिए उत्तरदायी कारणों का वर्णन करें।
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विभाजन के कारणों का उत्तर देते समय, दीर्घकालिक ऐतिहासिक प्रक्रियाओं (जैसे ब्रिटिश नीतियां) और तात्कालिक घटनाओं (जैसे सीधी कार्रवाई) दोनों को शामिल करना महत्वपूर्ण है ताकि एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जा सके।
भारत के विभाजन के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो' की नीति: यह विभाजन का सबसे महत्वपूर्ण दीर्घकालिक कारण था। 1857 के विद्रोह के बाद, अंग्रेजों ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मतभेदों को जानबूझकर बढ़ावा दिया। 1909 में मुस्लिमों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की शुरुआत ने सांप्रदायिक राजनीति को संस्थागत बना दिया।
मुस्लिम लीग और द्वि-राष्ट्र सिद्धांत: मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने इस विचार को आक्रामक रूप से बढ़ावा दिया कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। 1940 में लीग के लाहौर अधिवेशन में 'पाकिस्तान' की मांग का प्रस्ताव पारित होने के बाद, यह उनका एकमात्र एजेंडा बन गया।
कांग्रेस की विफलताएँ: कुछ हद तक, कांग्रेस मुस्लिम अल्पसंख्यकों के डर को दूर करने और उन्हें अपने साथ बनाए रखने में विफल रही। 1937 में संयुक्त प्रांत में मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन सरकार बनाने से इनकार करने जैसे फैसलों ने अलगाव की भावना को और बढ़ाया।
कैबिनेट मिशन (1946) की विफलता: यह भारत को एकजुट रखने का अंतिम गंभीर प्रयास था। इसकी विफलता ने विभाजन को लगभग अनिवार्य बना दिया।
सांप्रदायिक दंगे और सीधी कार्रवाई: कैबिनेट मिशन की विफलता के बाद, मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त, 1946 को 'सीधी कार्रवाई दिवस' का आह्वान किया, जिसके कारण भयानक सांप्रदायिक दंगे हुए। इस हिंसा ने कई नेताओं को यह विश्वास दिलाया कि विभाजन ही गृहयुद्ध को रोकने का एकमात्र रास्ता है।
माउंटबेटन की भूमिका और सत्ता हस्तांतरण की शीघ्रता: अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि एक संयुक्त भारत को बनाए रखना असंभव है और उन्होंने 'माउंटबेटन योजना' के माध्यम से विभाजन की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया।