भारत में बौद्ध धर्म के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
संघ में भ्रष्टाचार और विभाजन: समय के साथ, बौद्ध मठ (संघ) धनी हो गए और भिक्षुओं का जीवन विलासितापूर्ण हो गया, जिससे नैतिक पतन हुआ। बौद्ध धर्म हीनयान, महायान और वज्रयान जैसी शाखाओं में विभाजित हो गया, जिससे इसकी मूल एकता समाप्त हो गई।
राजकीय संरक्षण का अभाव: अशोक और कनिष्क जैसे शासकों के बाद, बौद्ध धर्म को मिलने वाला राजकीय संरक्षण कम हो गया। गुप्त शासक वैष्णव धर्म के अनुयायी थे और उन्होंने हिंदू धर्म को अधिक संरक्षण दिया।
ब्राह्मणवाद या हिंदू धर्म का पुनरुत्थान: शंकराचार्य जैसे हिंदू सुधारकों ने बौद्ध दर्शन को शास्त्रार्थ में चुनौती दी और हिंदू धर्म का पुनरुत्थान किया। हिंदू धर्म ने बुद्ध को विष्णु का अवतार मानकर बौद्ध धर्म की कई अच्छी बातों को आत्मसात कर लिया, जिससे बौद्ध धर्म का अलग आकर्षण कम हो गया।
लोकभाषा का त्याग: शुरुआत में बुद्ध ने पाली भाषा (आम लोगों की भाषा) में उपदेश दिए, लेकिन बाद में बौद्ध विद्वानों ने संस्कृत को अपना लिया, जिससे यह धर्म आम जनता से दूर हो गया।
विदेशी आक्रमण: हूणों और बाद में तुर्की आक्रमणकारियों ने नालंदा और विक्रमशिला जैसे प्रसिद्ध बौद्ध मठों और विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया, जिससे बौद्ध धर्म को भारी क्षति पहुँची।