‘‘जहाँ बुज़ुर्गों का साया होता है, वहाँ घर नहीं — मंदिर होता है।’’ यह कथन केवल भावनात्मक नहीं, जीवन की सच्चाई भी है।
बुज़ुर्ग हमारे जीवन के वह स्तंभ हैं जिन पर परिवार की नींव खड़ी होती है। उनके अनुभवों की खान में ज्ञान, धैर्य, सहिष्णुता और जीवन के उतार-चढ़ाव का अनमोल खज़ाना होता है।
बचपन में दादी-नानी की कहानियाँ सुनते हुए हमने जीवन के पहले पाठ सीखे। वे कहानियाँ केवल मनोरंजन नहीं, संस्कारों और नैतिकताओं की पोषक थीं।
बुज़ुर्गों ने हमें सिखाया कि हार कर बैठना नहीं, बल्कि हर गिरावट से कुछ सीखकर आगे बढ़ना होता है।
उनके अनुभवों ने समय के साथ हमें यह समझाया कि आधुनिक तकनीक भले तेज़ हो, लेकिन जीवन की गति में संतुलन और स्थिरता का मार्ग वही दिखा सकते हैं।
आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में हम उनके अनुभवों को ‘पुराना विचार’ समझ कर उपेक्षित कर देते हैं, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। जबकि सच्चाई यह है कि वही अनुभव हमें निर्णय लेने, रिश्तों को सँभालने और जीवन की पेचीदगियों से निपटने में सहायता करते हैं।
बुज़ुर्गों की उपस्थिति परिवार में एक नैतिक अनुशासन और आत्मीय ऊर्जा भर देती है।
समाज के लिए यह आवश्यक है कि हम बुज़ुर्गों को न केवल आदर दें, बल्कि उनके अनुभवों को सुनें, समझें और अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाने में उसका लाभ लें। वे सचमुच ‘अनुभव की खान’ हैं, जिनसे ज्ञान का अमृत बहता है।