अनेकान्तवाद की अवधारणा की व्याख्या करें।
Step 1: दार्शनिक आवश्यकता.
जगत जटिल है; दृष्टि-स्थान (नय) बदलने पर वर्णन बदलता है—अनेकान्तवाद एकांगी कट्टरता से बचाकर समन्वयकारी ढांचा देता है।
Step 2: स्याद्वाद (सप्तभंगी).
(1) स्यात् अस्ति, (2) स्यात् नास्ति, (3) स्यात् अस्ति-नास्ति, (4) स्यात् अवक्तव्य, (5) स्यात् अस्त्यवक्तव्य, (6) स्यात् नास्त्यवक्तव्य, (7) स्यात् अस्ति-नास्त्यवक्तव्य—ये उपाधि-निर्दिष्ट कथन हैं।
Step 3: नयवाद.
दृष्टिकोण-आधारित निरूपण—द्रव्य-नय, पर्याय-नय आदि—से आंशिक सत्य निर्दिष्ट होता है।
Step 4: नैतिक फल.
बौद्धिक अहिंसा, सहिष्णुता और संवाद-भाव का संस्कार; निर्णय में संदर्भ-सम्बद्धता बढ़ती है।
स्याद्वाद को समझाने के लिए जैन दर्शन में कितने 'नयों/भंगियों' का प्रतिपादन किया गया?
महावीर को निर्वाण कहाँ प्राप्त हुआ?
अनेकान्तवाद सम्बन्धित है—
बुद्ध के अष्टाङ्गिक मार्ग के प्रथम दो (सम्यक दृष्टि एवं सम्यक संकल्प) को क्या कहा जाता है?
चतुर्थ आर्य सत्य को क्या कहा जाता है?