दिये गये संस्कृत गद्यांशों में से किसी एक का समतुल्य हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
अथैषः शकुनिः सर्वेषां मध्यादाशयग्रहार्थं निकृत्यः अशाब्दयत। ततः एकः काकः उद्यातं दिङ्न्तं तावत् अस्य एतस्मिन् राज्याभिषेककाले एवं रूपं मुनिं, कृत्वधरं च कीरं भविष्यति? अयमेन हि कृत्वधेन अवलक्षिताः। वयं तत्कलादौ प्रक्षिप्तास्तिलाः। इदं तत् तवैतद्धधष्याम। ईश्वरो राजा ममयं न रोचते।
\(\textbf{Step 1: भूमिका.}\)
यह गद्यांश \(\textbf{महाभारत}\) से लिया गया है जिसमें शकुनि की कुटिलता और उसकी चालबाजी का उल्लेख है। यह राजनीति में उसके षड्यंत्रपूर्ण स्वभाव को दर्शाता है।
\(\textbf{Step 2: अनुवाद.}\)
तत्पश्चात् शकुनि ने सभी के बीच से अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए षड्यंत्रपूर्वक बोलना आरम्भ किया। तभी एक कौआ उड़ता हुआ दिखाई दिया। उसने कहा — “क्या इस राज्याभिषेक के अवसर पर यह सब उचित होगा? यह राजा यदि राज्य करेगा तो हमारे लिए कल्याणकारी नहीं होगा। हम सब इसके द्वारा ठगे जाएँगे। हम तो पहले ही इसके अधीन होकर पीड़ित हैं। इसलिए यह राजा मुझे स्वीकार नहीं है।”
\(\textbf{Step 3: निष्कर्ष.}\)
यह अंश दर्शाता है कि शकुनि ने सदैव छल और कुटिलता से कार्य करके राजनीति में असंतोष और विद्रोह को जन्म दिया। वह स्वार्थी और षड्यंत्रकारी व्यक्ति था।
\[ \text{शकुनि} \;=\; \text{स्वार्थ + छल + षड्यंत्र = असंतोष का जनक} \]
दिये गये संस्कृत गद्यांश का समतुल्य हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
बौद्धयुगे इमे सिद्धान्ताः वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युदयानाय प्रयुक्ताः आसन्। परम् अद्य इमे सिद्धान्ताः राष्ट्राणां परस्पर मैत्री सहयोगकारणानि विश्वबन्धुत्वस्य विश्वशान्तेः च साधनानि सन्ति। राष्ट्रनायकस्य श्रीजवाहरलालनेहरूमहोदयस्य प्रधानमन्त्रित्वकाले चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री पञ्चशीलसिद्धान्ताधिष्ठिता एवा अभवत्।