चरण 1: वैदिक आरम्भिक जीवनधारा पहचानें।
प्रारम्भिक वैदिक काल में आर्य मुख्यतः गोजीवी और घुमंतू प्रकृति के थे। उनका आर्थिक आधार गाय, घोड़े, भेड़-बकरी जैसे पशुधन पर टिका था; गो-धन ही प्रतिष्ठा और संपदा का माप माना जाता था।
चरण 2: साहित्यिक संकेत।
ऋग्वेदिक सूक्तों में गाय, गोचर, रथ, अश्व, गौ-रक्षा, गो-दान जैसे शब्द बार-बार आते हैं। यज्ञों में पशु, दुग्ध और घी का महत्व भी इसी पशुपालक अर्थव्यवस्था की ओर इशारा करता है।
चरण 3: अन्य विकल्प क्यों नहीं।
व्यापारिक संरचनाएँ बाद के काल में विकसित हुईं; आरम्भिक अवस्था में वे व्यापारी प्रधान समाज नहीं थे। कृषि का प्रसार उत्तर वैदिक काल में अधिक हुआ—हल, सिंचाई और स्थायी ग्राम-जीवन के साथ। खाद्य संग्राहक शिकार-संग्रह अर्थव्यवस्था का द्योतक है, जो वैदिक आर्यों की मुख्य पहचान नहीं थी।
निष्कर्ष: आर्य प्रारम्भ में प्रायः पशुपालक थे; बाद में कृषि और व्यापार का विस्तार हुआ।