स्वरूप:
विज्ञापन, क्रेडिट, फास्ट-फैशन व नियोजित अप्रचलन उपभोग चक्र बढ़ाते हैं; ''मैं क्या खरीदता हूँ'' से पहचान बनती है।
सकारात्मक पक्ष:
प्रतिस्पर्धा/गुणवत्ता, उत्पाद विविधता, रोज़गार/नवाचार में योगदान।
नकारात्मक पक्ष:
कचरा/कार्बन उत्सर्जन, संसाधन-क्षय, मानसिक दबाव/ऋण जाल, असमानता का प्रदर्शन।
संतुलन:
उपभोक्ता-अधिकार, सूचना पारदर्शिता, टिकाऊ उत्पाद, परिपत्र अर्थव्यवस्था, न्यूनतमवाद व वित्तीय-शिक्षा से स्वस्थ उपभोग संभव है।