Question:

अधोलिखित में से किसी एक अंश की हिंदी में संदर्भ-सहित व्याख्या कीजिए। 
"उदासिन-र्दृष्टकलां मृत्युः; परिवर्तन्तर्न मृत्युः। 
अप्रसूत पाण्डुघ्रणा मुञ्चन्त्यं श्रुण्णिपीव लता॥" 

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इस श्लोक की व्याख्या में ध्यान दें कि मृत्यु केवल जीवन का अंत नहीं है, बल्कि यह एक परिवर्तन के रूप में आती है, जो जीवन के नए रूप को जन्म देती है।
Updated On: Sep 26, 2025
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Solution and Explanation

व्याख्या: यह श्लोक जीवन और मृत्यु के विषय में गहरे विचार प्रस्तुत करता है। 'उदासिन-र्दृष्टकलां मृत्युः' का अर्थ है वह मृत्यु जो किसी व्यक्ति को उदासीन या निराश करके आती है। यह श्लोक यह संकेत करता है कि मृत्यु का भय व्यक्ति को बिना किसी चेतावनी के अपनी चपेट में ले सकता है। इसके बाद श्लोक में 'परिवर्तन्तर्न मृत्युः' द्वारा यह बताया गया है कि मृत्यु जीवन के बदलाव के रूप में आ सकती है। वह व्यक्ति जो अपने कर्मों से दूर रहता है, उसे मृत्यु के बाद एक नया रूप मिलता है, जैसे पौधों और लताओं का वर्धन और विकास। अंत में, 'अप्रसूत पाण्डुघ्रणा मुञ्चन्त्यं श्रुण्णिपीव लता' का यह अर्थ है कि आत्मा एक ऐसे मार्ग पर चलती है जहां उसे आत्मविकास और शांति मिलती है।
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