'शांत' रस और 'वात्सल्य' रस दोनों भारतीय काव्यशास्त्र में भावनाओं के रस के रूप में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
शांत रस:
शांत रस को शांति और सुख का रस कहा जाता है, जो मानसिक संतोष और आत्मिक शांति की भावना से जुड़ा होता है। यह रस तब उत्पन्न होता है जब व्यक्ति के हृदय में निरंतर संतोष, शांति और शुद्धता की भावना जागृत होती है। शांत रस को विशेष रूप से भगवान की उपासना, ध्यान और साधना के समय अनुभव किया जाता है, जब व्यक्ति पूरी तरह से मानसिक शांति प्राप्त करता है।
वात्सल्य रस:
वात्सल्य रस उस भाव को कहते हैं जो माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति अथवा गुरु और शिष्य के रिश्ते में एक गहरी ममता और स्नेह से उत्पन्न होता है। यह रस प्रेम, स्नेह और दया से संबंधित है, जो व्यक्ति को अपार वात्सल्य और ममता की अनुभूति कराता है।
उदाहरण:
'वात्सल्य रस' का एक उदाहरण भगवान श्री कृष्ण और माता यशोदा के बीच का संवाद है। जब माता यशोदा श्री कृष्ण को गोवर्धन पर्वत उठाते हुए देखती हैं, तो उनका प्रेम और चिंता का भाव एक गहरे वात्सल्य रस में बदल जाता है। यह दृश्य वात्सल्य रस का आदर्श उदाहरण है, जहां माता अपने पुत्र के प्रति अत्यधिक स्नेह और ममता का अनुभव करती हैं।
शांत रस का उदाहरण: श्रीराम का ध्यान करते समय शांति और संतोष की अनुभूति करना।
वात्सल्य रस का उदाहरण: श्री कृष्ण और माता यशोदा के बीच संवाद, जहां माता अपने बच्चे के प्रति अत्यधिक प्रेम और चिंता दर्शाती हैं।