असफलता के कारणों में भारत-पाकिस्तान संबंधों को मुख्य और सबसे महत्वपूर्ण कारण के रूप में प्रस्तुत करें, क्योंकि अधिकांश अन्य समस्याएँ इसी से जुड़ी हुई हैं।
सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) की स्थापना 1985 में दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के महान उद्देश्य के साथ की गई थी। हालाँकि, यह संगठन अपनी क्षमता के अनुसार प्रदर्शन करने में काफी हद तक असफल रहा है। इसकी असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
भारत-पाकिस्तान का तनावपूर्ण संबंध: सार्क के दो सबसे बड़े सदस्य देशों, भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार बना रहने वाला राजनीतिक और सैन्य तनाव संगठन की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा रहा है। कश्मीर मुद्दा और सीमा पार आतंकवाद जैसे विवादों ने आपसी विश्वास को खत्म कर दिया है, जिससे कोई भी महत्वपूर्ण पहल आगे नहीं बढ़ पाती है।
आपसी अविश्वास और संदेह: सदस्य देशों के बीच, विशेष रूप से छोटे देशों में भारत को लेकर, एक गहरे अविश्वास का माहौल है। छोटे पड़ोसी देशों को अक्सर यह डर रहता है कि भारत अपने बड़े आकार और शक्ति के कारण क्षेत्र पर हावी हो सकता है।
साफ्टा (SAFTA) का अप्रभावी होना: दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) की स्थापना के बावजूद, सदस्य देशों के बीच आपसी व्यापार बहुत कम (लगभग 5%) है। संरक्षणवादी नीतियों और गैर-टैरिफ बाधाओं ने आर्थिक एकीकरण को बाधित किया है।
सम्मेलनों का स्थगन: सार्क का नियम है कि यदि कोई भी सदस्य देश शिखर सम्मेलन में भाग लेने से इनकार करता है, तो उसे स्थगित कर दिया जाता है। भारत-पाकिस्तान तनाव के कारण कई बार शिखर सम्मेलन रद्द या स्थगित हुए हैं, जिससे संगठन की पूरी प्रक्रिया रुक जाती है।
आतंकवाद का मुद्दा: आतंकवाद इस क्षेत्र की एक बड़ी समस्या है, लेकिन सदस्य देश इसकी एक साझा परिभाषा और इससे निपटने के लिए एक संयुक्त रणनीति पर सहमत होने में विफल रहे हैं।