पं. भातखण्डे ने भारतीय संगीत में स्वरलिपि (notation) को एक संरचित रूप में प्रस्तुत किया, ताकि संगीत के शिक्षण और प्रसार में मदद मिल सके। उनकी स्वरलिपि पद्धति को भातखण्डे की स्वरलिपि पद्धति कहा जाता है, जो मुख्यतः भारतीय शास्त्रीय संगीत की ध्वनियों और स्वरों को अंकित करने के लिए प्रयोग की जाती है।
स्वरलिपि पद्धति की विशेषताएँ:
स्वरों का अंकन: भातखण्डे ने सात मुख्य स्वरों (सा, रे, ग, म, प, ध, नि) के लिए विशेष प्रतीकों का प्रयोग किया।
ताल का अंकन: ताल के समय और गति को व्यक्त करने के लिए भातखण्डे ने विशेष संकेतों का उपयोग किया।
उच्चारण की विधि: भातखण्डे की स्वरलिपि पद्धति ने संगीत के उच्चारण और लय का सही तरीके से पालन सुनिश्चित किया।
संगीत में सरलता: यह पद्धति संगीत को लिखित रूप में प्रस्तुत करने में आसान और सटीक थी, जो विशेष रूप से गायन और वादन के लिए उपयोगी थी।