अपठित गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
जिस प्रकार सुखी होने का प्रत्येक प्राणी को अधिकार है, उसी प्रकार मुक्तातंक होने का भी प कार्यक्षेत्र के चक्रव्यूह में पड़कर जिस प्रकार सुखी होना प्रयत्न साध्य होता है उसी प्रकार निर्भय होना भी । निर्भयता के संपादन के लिए दो बातें अपेक्षित होती हैं – - पहली तो यह कि दूसरों को हमसे किसी प्रकार का भय या कष्ट न हो; दूसरी यह कि दूसरे हमको कष्ट या भय पहुँचाने का साहस न कर सकें । इनमें से एक का संबंध उत्कृष्ट शील से है और दूसरी का शक्ति और पुरुषार्थ से । इस संसार में किसी को न डराने से ही डरने की सम्भावना दूर नहीं हो सकती। साधु से साधु प्रकृतिवाले को क्रूर लोभियों और दुर्जनों से क्लेश पहुँचता है । अतः उनके प्रयत्नों को विफल करने या भय-संचार द्वारा रोकने की आवश्यकता से हम बच नहीं सकते ।
सुखी होने के साथ और क्या होना प्रयत्न - साध्य होता है ?
निर्भयता के सम्पादन के लिए क्या करना अपेक्षित है ?
शील, शक्ति और पुरुषार्थ जैसी वृत्तियों का सम्बन्ध किनसे है ?
अपठित गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
गद्यांश:
आज से कई वर्ष पहले गुरुदेव के मन में आया कि शांति निकेतन को छोड़कर कहीं अन्यत्र जाएं। स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं था। शायद इसलिए, या पता नहीं क्यों, वे पाया कि श्रीनिकेतन के पुराने मिट्टीले मकान में रहें। शायद बीच में आकर यह निर्णय लिया। वे सबसे ऊपर के तलघर में रहने लगे। उन दिनों ऊपर तक पहुँचने के लिए लोहे की चक्करदार सीढ़ी थी, और वृद्ध और क्षीणकाय रविंद्रनाथ के लिए उस पर चढ़ सकना असंभव था। फिर भी बड़ी कठिनाई से उन्हें वहाँ ले जाया जा सका।
अपठित गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
कुछ कार्य ऐसे भी होते हैं, जो अनेक छोटे-छोटे कर्मों की समष्टि जैसे होते हैं। उदाहरणार्थ, यदि हम समुद्र के किनारे खड़े हों और लहरों को किनारे से टकराते हुए सुनें, तो ऐसा मालूम होता है कि एक बड़ी भारी आवाज़ हो रही है । परन्तु हम जानते हैं कि एक बड़ी लहर असंख्य छोटी-छोटी लहरों से बनी है । और यद्यपि प्रत्येक छोटी लहर अपना शब्द करती है, परंतु फिर भी वह हमें सुनाई नहीं पड़ती । पर ज्यों ही ये सब शब्द आपस में मिलकर एक हो जाते हैं, त्यों ही हमें बड़ी आवाज़ सुनाई देती है । इसी प्रकार हृदय की प्रत्येक धड़कन कार्य है । कई कार्य ऐसे होते हैं, जिनका हम अनुभव करते हैं, वे हमें इन्द्रियग्राह्य हो जाते हैं, पर वे अनेक छोटे-छोटे कार्यों की समष्टि होते हैं ।