संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की स्थापना से ही भारत इसका एक सक्रिय और महत्वपूर्ण सदस्य रहा है। भारत ने यूएन के सिद्धांतों और उद्देश्यों को बढ़ावा देने में लगातार एक रचनात्मक भूमिका निभाई है। यूएन में भारत की भूमिका को निम्नलिखित क्षेत्रों में देखा जा सकता है: संस्थापक सदस्य और चार्टर में योगदान: भारत 1945 में यूएन के संस्थापक सदस्यों में से एक था और उसने यूएन चार्टर के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। शांति स्थापना अभियान: भारत यूएन के शांति स्थापना अभियानों में सबसे बड़े सैन्य योगदानकर्ताओं में से एक रहा है। भारतीय सैनिकों ने दुनिया भर के कई संघर्षग्रस्त क्षेत्रों जैसे कोरिया, कांगो, सोमालिया और मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता बहाल करने में अपनी सेवाएं दी हैं। उपनिवेशवाद और रंगभेद का विरोध: भारत ने यूएन के मंच का उपयोग उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और रंगभेद के खिलाफ जोरदार आवाज उठाने के लिए किया। भारत ने एशिया और अफ्रीका के कई देशों की स्वतंत्रता का समर्थन किया और दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अभियान का नेतृत्व किया। गुटनिरपेक्षता और निरस्त्रीकरण: शीत युद्ध के दौरान, भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया और यूएन में नव-स्वतंत्र देशों के हितों का प्रतिनिधित्व किया। भारत ने हमेशा व्यापक और भेदभाव-रहित निरस्त्रीकरण, विशेषकर परमाणु निरस्त्रीकरण की वकालत की है। सतत विकास और मानवाधिकार: भारत ने सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और हमेशा विकासशील देशों (Global South) के हितों का समर्थन किया है। यूएन सुधारों की वकालत: वर्तमान में, भारत यूएन, विशेषकर सुरक्षा परिषद् में सुधारों का एक प्रमुख पक्षधर है। भारत का तर्क है कि परिषद् को समकालीन वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करना चाहिए और वह स्वयं सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता का एक प्रबल दावेदार है। संक्षेप में, भारत ने यूएन में एक जिम्मेदार, शांतिप्रिय और विकासशील देशों के हितों के रक्षक के रूप में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है।