समकालीन विश्व में भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व बतायें।
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अपने उत्तर में 'रणनीतिक स्वायत्तता' (Strategic Autonomy) और 'हिंद-प्रशांत क्षेत्र' (Indo-Pacific Region) जैसे समकालीन शब्दों का प्रयोग करें। यह दर्शाता है कि आप वर्तमान विदेश नीति के रुझानों से अवगत हैं।
समकालीन विश्व में भारत की विदेश नीति गतिशील और बहुआयामी है, जिसे कई आंतरिक और बाहरी तत्व निर्धारित करते हैं। प्रमुख निर्धारक तत्व निम्नलिखित हैं:
राष्ट्रीय हित और सुरक्षा: किसी भी देश की तरह, भारत की विदेश नीति का सर्वोपरि उद्देश्य अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है। इसमें सीमा सुरक्षा, सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला, और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल है। चीन और पाकिस्तान के साथ जटिल संबंध भारत की सुरक्षा नीति को प्रमुख रूप से आकार देते हैं।
आर्थिक विकास: 21वीं सदी में भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख चालक आर्थिक विकास है। भारत को अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी निवेश, प्रौद्योगिकी, बाजार और ऊर्जा संसाधनों की आवश्यकता है। इसलिए, 'मेक इन इंडिया' और 'स्किल इंडिया' जैसी घरेलू पहलों को समर्थन देने के लिए भारत दुनिया भर के देशों के साथ आर्थिक साझेदारी को बढ़ावा दे रहा है।
भू-राजनीतिक स्थिति: भारत की भौगोलिक स्थिति इसे हिंद महासागर क्षेत्र और एशिया में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक खिलाड़ी बनाती है। बदलती वैश्विक व्यवस्था, विशेष रूप से चीन का उदय और हिंद-प्रशांत क्षेत्र का बढ़ता महत्व, भारत को अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया (क्वाड के माध्यम से) और आसियान देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रेरित कर रहा है।
ऐतिहासिक और वैचारिक मूल्य: भारत की विदेश नीति अभी भी गुटनिरपेक्षता की विरासत, पंचशील के सिद्धांतों और अपने लोकतांत्रिक मूल्यों से प्रभावित है। भारत 'रणनीतिक स्वायत्तता' (Strategic Autonomy) की नीति का पालन करता है, जिसका अर्थ है कि वह अपने निर्णय स्वतंत्र रूप से लेता है।
प्रौद्योगिकी और नवाचार: प्रौद्योगिकी का बढ़ता महत्व, विशेष रूप से साइबर सुरक्षा, डिजिटल अर्थव्यवस्था और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में, भारत की विदेश नीति का एक नया निर्धारक बन गया है।
प्रवासी भारतीय (Indian Diaspora): दुनिया भर में फैले लगभग 3 करोड़ प्रवासी भारतीय भी भारत की विदेश नीति को प्रभावित करते हैं, जो उन देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने में एक सेतु का काम करते हैं।