राजकोषीय नीति सरकार के आय‑व्यय द्वारा सामूहिक माँग को प्रभावित करती है। मंदी में वह विस्तारवादी नीति अपनाती है—व्यय बढ़ाती, कर घटाती, घाटा वित्त से निवेश को प्रोत्साहित करती है; इससे गुणक प्रभाव से आय‑रोजगार बढ़ते हैं। मुद्रास्फीति के समय संकीर्ण नीति अपनाई जाती है—कर बढ़ते, गैर‑आवश्यक व्यय घटते और उधारी कम की जाती है। हस्तांतरण/सब्सिडी आय वितरण और प्राथमिकताओं को प्रभावित करते हैं। लोकऋण प्रबंधन उधारी की लागत और परिपक्वता संरचना पर ध्यान देता है। स्वचालित स्थिरीकारक बिना नयी नीति की घोषणा के स्वयं काम करते हैं, जैसे प्रगतिशील आयकर मंदी में संग्रह घटाकर आय को सहारा देता है। समन्वित रूप से यह नीति मौद्रिक नीति के साथ मिलकर स्थिरता और विकास का लक्ष्य साधती है।