प्रत्यक्ष करों में कर‑जिम्मेदारी और वास्तविक भार एक ही इकाई पर पड़ता है, अतः वे आय और संपदा वितरण को प्रभावित करने के प्रभावी साधन हैं। सरकार इन्हें प्रगतिशील बना कर उच्च आय वर्ग से अधिक अनुपात में कर ले सकती है, जिससे असमानता कम होती है। इनके लाभ हैं—न्याय, लोचशीलता और राजस्व स्थिरता; किंतु अनुपालन लागत, चोरी की संभावना और प्रशासनिक जटिलताएँ चुनौतियाँ हैं। अप्रत्यक्ष करों के विपरीत प्रत्यक्ष कर कीमतों में तुरंत नहीं जोड़ते, इसलिए मुद्रास्फीति दबाव कम होता है। आधुनिक कर‑संरचना में दोनों प्रकार के करों का संतुलित मिश्रण आवश्यक है ताकि दक्षता और समानता के लक्ष्यों का समन्वय हो सके।