क्षेत्रीय वर्गीकरण से संरचनात्मक परिवर्तन स्पष्ट होते हैं। प्राथमिक क्रियाएँ भूमि और प्राकृतिक उपहारों पर निर्भर हैं; मौसम, मानसून और भू-संपदा इनके निर्णायक कारक हैं। रोजगार सघनता अधिक पर उत्पादकता सामान्यतः कम रहती है। द्वितीयक क्षेत्र में कच्चा माल मशीनों और तकनीक से संसाधित होकर मूल्य‑वर्धित उत्पादों में बदलता है—उद्योग, निर्माण, बिजली‑गैस‑पानी आदि। यह क्षेत्र पूँजी‑गहन और कौशल‑आधारित होता है तथा शहरीकरण, निर्यात और आय वृद्धि को गति देता है। विकास के साथ श्रम प्राथमिक से द्वितीयक/तृतीयक की ओर शिफ्ट होता है, जिसे संरचनात्मक परिवर्तन कहा जाता है। नीतियाँ भी इसी परिवर्तन को प्रोत्साहित करती हैं ताकि उत्पादकता और आय स्तर बढ़े।