भारतीय आचार-दर्शन में मनुष्य-जीवन के चार प्रयोजन चतुर्वर्ग या पुरुषार्थ कहलाते हैं—धर्म (नैतिक-नीतिक आचरण/कर्तव्य), अर्थ (उपजीविका/सम्पत्ति का न्यायपूर्ण साधन), काम (इच्छाओं/रसों की मर्यादित पूर्ति) और मोक्ष (बंधन-मुक्ति/आध्यात्मिक सिद्धि)। ये चारों जीवन-समन्वय का मार्गदर्शन करते हैं—धर्म इनके लिए नियामक है, मोक्ष सर्वोच्च माना जाता है। आत्मा दार्शनिक सत्ता/तत्त्व है, प्रयोजन नहीं; अतः विकल्प (3) आत्मा पुरुषार्थ नहीं है, जबकि ''काम'' (जो विकल्पों में नहीं) चौथा पुरुषार्थ है।