स्पष्टीकरण:
भैरव राग को जनक राग कहा जाता है क्योंकि इससे कई अन्य राग उत्पन्न होते हैं। भैरव राग भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्राचीन और महत्वपूर्ण रागों में से एक है, और इसे रागों के आधार के रूप में माना जाता है। यह राग मुख्य रूप से प्रातःकाल में गाया जाता है और इसकी संगीत रचना गंभीरता, ध्यान और आध्यात्मिकता को व्यक्त करती है।
भैरव राग के आरोह और अवरोह में ऋषभ (Re) और धैवत (Dha) स्वर का प्रयोग कोमल रूप में किया जाता है, जो इसे एक विशिष्ट ध्वनि और भावनात्मक गहराई प्रदान करते हैं। भैरव राग का स्वरूप विशेष रूप से गंभीर और शांत होता है, जो श्रोता को एक ध्यानमग्न और भावुक स्थिति में ले जाता है।
कई अन्य राग, जैसे भैरवी, भैरव मल्हार, और शिव राग आदि, भैरव राग से उत्पन्न हुए हैं। भैरव राग का प्रभाव इन रागों पर देखा जा सकता है, जो इसकी ध्वनि संरचना और भावनाओं को अपने संगीत में संचारित करते हैं।
इस प्रकार, भैरव राग को जनक राग कहा जाता है क्योंकि इससे कई अन्य राग उत्पन्न होते हैं, और यह शास्त्रीय संगीत में एक मूल राग के रूप में कार्य करता है, जो कई संगीतकारों के रचनात्मक प्रयासों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।