यह पुस्तक J.\,M. Keynes (1936) की रचना है, जिसने पारम्परिक/क्लासिकल धारणा (पूर्ण रोजगार, Say's Law) को चुनौती देकर प्रभावी माँग (effective demand), निवेश–बचत असंतुलन, तरलता वरीयता (liquidity preference) और अनैच्छिक बेरोज़गारी जैसे विचारों से आधुनिक समष्टि अर्थशास्त्र की नींव रखी।