यह पुस्तक J. M. Keynes ने 1919 में लिखी। इसमें प्रथम विश्व युद्ध के बाद वर्साय संधि से जर्मनी पर लादे गए कठोर दायित्वों की आलोचना की गई और चेतावनी दी गई कि अत्यधिक क्षतिपूर्ति मांगें यूरोप की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करेंगी। इस पुस्तक ने युद्धोत्तर वित्त और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक नीति पर गहरा प्रभाव डाला।