रूप:
भ्रातृ-बहुपति (भाई एक पत्नी साझा) तथा अभ्रातृ-बहुपति।
कारण:
कठोर भौगोलिक/आर्थिक परिस्थितियाँ, सीमित संसाधन, विरासत का समेकन, श्रम-वितरण और संतान संख्या पर नियंत्रण।
परिणाम:
संपत्ति एकजुट रहती पर महिलाओं की स्वायत्तता/भावनात्मक दबाव, उत्तराधिकार/वंश पहचान जैसी जटिलताएँ; बच्चों की पितृत्व-संबंधी संहिताएँ अलग-अलग समाजों में भिन्न।
वर्तमान:
शिक्षा, बाज़ार, क़ानूनी एकविवाह और प्रवासन से यह प्रथा सिकुड़ रही है।