आरोह और अवरोह किसी भी राग की बुनियादी संरचना को स्पष्ट करने वाले दो मुख्य तत्व होते हैं।
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आरोह वह क्रम है जिसमें राग के स्वरों को नीच (मंद्र सप्तक) से उच्च (तार सप्तक) की ओर क्रमशः चढ़ते हुए प्रस्तुत किया जाता है। इसमें स्वर ऊपर की दिशा में एक के बाद एक बढ़ते हैं।
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उदाहरण के लिए: \textit{सा, रे, ग, म, प, ध, नि, सां}
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अवरोह वह क्रम है जिसमें राग के स्वरों को उच्च से नीच की ओर क्रमशः उतरते हुए प्रस्तुत किया जाता है। इसमें स्वर नीचे की दिशा में एक के बाद एक घटते हैं।
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उदाहरण के लिए: \textit{सां, नि, ध, प, म, ग, रे, सा}
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आरोह और अवरोह से यह निर्धारित होता है कि राग में कौन-कौन से स्वर किस क्रम में प्रयोग किए जाएंगे।